Childhood and adulthood; - A friend, a companion
Childhood and adult are two stages that every human being
has to go through, but both these situations are related to each other or the
reflection of childhood is clearly visible on our adult life.
So let's talk today on this title, how a childhood is
connected to our adult life and how the shadow of childhood falls on our adult
life. What I or you have done in your whole life, what will you do next, it
also depends on these stages somewhere .
If I talk about what childhood is or how I can explain it
to someone. So it will probably look very easy to understand but it is equally
difficult to explain because it is not necessary that everyone has the same
childhood. Because, whose childhood remains the same, he easily assumes that
yes, childhood is like this, while the one whose childhood is not like this,
does not believe in it and says that where someone's childhood happens. So
today I have to talk about this topic here. What exactly is childhood and
adult, how are they related to each other.
Childhood; - A mindless journey
In my eyes, if I say childhood, it is a period of
imprudence. Where every day we get a new thing to learn . New people, new
relationships are all new. Everyone is valued even in childhood, but just
because of all senselessness, despite everything, it is equal to not being
there.
In childhood, we are completely free to think. But what to
do on that or what we can do next, we cannot take this decision.
Adulthood; - Time to do something
What can be said about adulthood . This is just a time
that is going to come after our childhood. But it shows the effect on your
whole life. This is why it is an important time, because in it you decide what
to become in your life or how to live your future life. This situation
In you, you are
completely independent for your thinking and your decisions. Your decision is
yours that determines your future. Adulthood is what strengthens you to fight
alone in a competitive world. Because at this time sometimes no one is with you
as they were in childhood.
Childhood a shadow; - On to adulthood
Childhood, as I said, is a learning time. Because here we
are new . So every day we get to learn or learn something new, we know
something about what happens next in life, because sometimes some such words
come in front of us. We have to follow someone to know what happens, does it
happen to everyone.
Every day, because of knowing new words, we also dream
some dreams, that this is what I want to become when I grow up. Which we start
speaking everyday since childhood. And when we move towards our adulthood, we
have grown towards what we thought in childhood. It is here that we can see a
reflection of our childhood in our adult life.
Because when our childhood dreams come true when we become
adults, we do not get tired of saying that it was my childhood dream that I
will definitely become one day and today I have become one.
In the same way as someone is treated in childhood, the
same effect is seen when he is an adult. For example, if someone is treated
badly in one's childhood with anything, it can never be a good behavior for the
society and for those people. He is the one who is treated well or is loved
every moment, goes on to become a good citizen for society and thinks about the
well being of others.
So you must have understood how childhood is like a reflection
of one's adult life. The effect of which is seen as an adult.
So every child is precious. Give him as much love as you
can, feel that he is happy. And came forward with a good thought . Who should
think about the well being of society in future and be called a good citizen.
If I come to a conclusion based on everything I have said,
it would be very easy for me to say that childhood is such a part of our life
without which we cannot imagine our future. Childhood is probably us and you,
with a thought, because childhood determines your goal. It makes everyone
anticipate how you are going to look in the future or what kind of behavior you
will have towards all people and society.
Together; - Vision on childhood and adulthood
If childhood and adulthood are seen together and it is
said that what is better of both, is good childhood or good adulthood. So no
definite decision can be taken about it because one's childhood is better then
one's adulthood.
If someone's childhood is better than their adulthood, then
they easily say that I had a better childhood than this. On the other hand, if
someone is more adulthood than his childhood, then he does not like his
childhood.
But no matter what your childhood has been, you should not
see it so much during adulthood. Because adulthood gives you a new start all
the time . From where you can make yourself a successful person .
Whatever your childhood has been, it can be seen as a
direction that if you stay ahead like this then how will your future be . At
the same time, your adulthood forgets all this and gives a chance to start a
new beginning. It motivates you to fall and stand again so that you can improve
your future.
My point here was that someone's childhood cannot
determine his entire future. All is just at the beginning of when you start
preparing yourself for something new, and from there your whole life changes.
However, no matter how young, black, small, fat or whatever is lacking in
childhood, he should not feel everywhere that there is a huge deficiency and he
is not fit to live in society. Because in such a situation he needs someone .
Who can make him feel that there is no shortage in him and he is perfect in
every way.
So that he could not pay attention to his shortcomings ,
and happiness could lead himself to a good future.
बचपन और वयस्कता ;- एक दोस्त ,एक साथी
बचपन और वयस्क ये दो पड़ाव है जिससे हर इंसान को गुजरना होता
ही है लेकिन ये दोनों स्थिति एक दूसरे से जुड़ी होती हैं या बचपन का प्रतिबिम्ब हमारे
वयस्क जीवन पर साफ साफ़ दिखाई देता है।
तो आज बात किया जाए कुछ इसी शीर्षक पे ,कि कैसे एक बचपन हमारे
वयस्क जीवन से जुड़ा रहता है और बचपन की परछाई हमारे वयस्क जीवन पे कैसे पड़ती है। मैंने या आपने
अपने पुरे जीवन में क्या किया है , आगे क्या करेंगे ये इन्ही पड़ावों पर निर्भर भी करता है कहीं
न कहीं।
यदि मैं बात करूं की बचपन क्या है या इसे कैसे किसी को समझा
सकते है। तो ये शायद बहुत आसान सा लगेगा समझने में लेकिन ये समझाने में उतना ही कठिन भी है क्यूंकि हर किसी का बचपन एक जैसा हो ये जरूरी
भी नहीं होता है। क्यूंकि ,जिसका बचपन वैसा रहता
है वो आसानी से मान लेता है की हाँ बचपन तो ऐसा होता है , वहीं जिसका बचपन ऐसा
ना रहा हो वो इससे नहीं मानता है और कहता है की ऐसे कहाँ किसी का बचपन होता है। तो
आज यहां इसी विषय के बारे में बात करनी है मुझे की वास्तव में में बचपन और वयस्क क्या
है ये कैसे एक दूसरे से जुड़े होते है।
बचपन;- एक नासमझी का सफर
बचपन को यदि कहूं तो ये एक नासमझी का दौर होता है मेरे नजर में।
जहां रोज एक नयी चीज मिलती है सीखने को। नए लोग , नए रिश्ते सब एकदम सा नया - नया होता है। सबकी कदर
भी होती है बचपन में लेकिन बस नासमझी की वजह से सब कुछ होते हुए भी ना होने के बराबर
ही होता है।
बचपन में हम पूर्णरूप से स्वतंत्र होते है एक सोच के लिए। लेकिन
उस पर क्या करना है या कुछ भी आगे क्या
कर सकते है तो ये फैसला हम नहीं ले सकते है।
वयस्कता ;- कुछ कर दिखाने का समय
वयस्कता के बारे में क्या कहा जा सकता है। ये तो बस एक समय है
जो हमारे बचपन के बाद आने वाला होता
है। लेकिन ये आपके पुरे जीवन पर असर दिखा देता है। इसी वजह से ये एक महत्वपूर्ण समय
होता है, क्यूंकि इसमें आप
अपने जीवन में क्या बनना है या अपना आगे का जीवन कैसा बीताना है ये निर्धारित करते
है। इस स्थिति में आप अपनी सोच और अपने फैसलों के लिए पूर्णरूप से पूर्णस्वतंत्र होते
है। आपका फैसला आपका होता है जो आपके भविष्य को निर्धारित करता है। वयस्कता ही है जो एक प्रतिस्पर्धा वाली दुनिया में आपको
अकेले लड़ने के लिए मजबूत करता है। क्यूंकि इस समय कभी - कभी कोई आपके साथ नहीं होता
है जैसा की बचपन में हुआ करते हैं।
बचपन एक परछाईं;- वयस्कता पर
बचपन जैसा की मैंने कहा एक सीखने का समय होता है। क्यूंकि यहाँ
हम नए होते हैं। तो रोज हमें कुछ न कुछ नया सिखने या देखने को मिलता ही है , हम जीवन में आगे क्या-
क्या होता है ये कुछ- कुछ जान भी लेते हैं, क्यूंकि कभी- कभी
हमारे सामने कुछ ऐसे शब्द आ ही जाते हैं। जिसे जानने के लिए हम किसी के पीछे ही पड़
जाते हैं, कि ये क्या होता है
क्या ऐसा सबके साथ होता है।
रोज नए नए शब्दों के मालूम होने के वजह से ही हम कुछ सपने भी
देख लेते हैं, कि बड़ा होकर मुझे
यही बनना है। जिसे हम बचपन से ही रोज बोलने लगते हैं। और जब हम अपनी वयस्कता की ओर
बढ़ते हैं तो जो हमने बचपन में सोचा था उसके ओर बढ़ भी चुके होते हैं। यहीं पर हमारे
बचपन की एक परछाईं को हम अपने वयस्क जीवन में देख सकते हैं।
क्यूंकि वयस्क होने पर हमारे बचपन के देखे सपने जब सच हो जाते
हैं ,तो हम ये कहते नहीं
थकते हैं कि ये तो मेरा बचपन का एक सपना था, कि मैं एक दिन ये जरूर बनूँगा और देखो आज मैं बन भी गया।
वैसे ही किसी के साथ बचपन में जैसा व्यवहार किया जाता है तो
उसका वैसा ही प्रभाव उसके वयस्क होने पर दिखाई देता है। जैसे की यदि किसी के बचपन में
किसी के साथ कुछ बुरा व्यवहार किया जाता है किसी भी चीज को लेकर, तो उसका समाज के लिए
और उन लोगों के लिए कभी भी एक अच्छा व्यवहार नहीं हो सकता है। वही जिसके साथ अच्छा
व्यवहार किया जाता है या हर पल प्यार मिला
होता है हर किसी से तो आगे चल कर समाज के लिए एक अच्छा नागरिक बनता है और दूसरों की
भलाई के बारे में भी सोचता है।
तो आप समझ ही गए होंगे कि बचपन कैसे किसी के वयस्क जीवन की परछाई
की तरह होता है। जिसका प्रभाव वयस्क होने पर दिखाई देता है।
तो हर बच्चा अनमोल होता है। उसे जितना हो सके प्यार दीजिये , अपनापन महसूस कराइए
कि वो खुश रहे। और एक अच्छी सोच के साथ आगे उभर कर आये। जो कि भविष्य में समाज की भलाई
के बारे में सोचे और एक अच्छा नागरिक कहलाये।
यांनी यदि मैं अपनी सारी कही बातों के आधार पर किसी निष्कर्ष
पर आऊं तो ये कहना बिल्कुल आसान होगा मेरे लिए की बचपन हमारे जीवन का एक ऐसा हिस्सा
है जिसके बिना हम अपना भविष्य सोच ही नहीं सकते है। बचपन है तो ही शायद हम और आप है, एक सोच के साथ, क्यूंकि बचपन ही आपके
लक्ष्य का निर्धारण करता है। ये सभी को ये अंदेशा करा देता है की आप भविष्य में किस
रूप में दिखने वाले है या किस तरह का व्यवहार होगा आपका सभी लोगों के प्रति और समाज के प्रति।
एक साथ ;- बचपन और वयस्कता पर दृष्टि
यदि बचपन और वयस्कता को एक साथ देखा जाए और ये कहा जाए की दोनों
में से क्या बेहतर है ,बचपन अच्छा है या
वयस्कता अच्छी है। तो इस बारे में कोई निश्चित रूप से निर्णय नहीं लिया जा सकता है
क्यूंकि किसी का बचपन बेहतर होता है तो किसी की वयस्कता।
किसी का बचपन यदि उसकी
वयस्कता से बेहतर होता है तो वो आसानी से कहता है कि इससे अच्छा तो मेरा बचपन था। वहीं
कोई ऐसा हो जिसका बचपन से ज्यादा उसकी वयस्कता अच्छी है, तो उसे अपना बचपन
अच्छा नहीं लगता है।
लेकिन आपका बचपन कैसा भी रहा हो उसे इतना ज्यादा नहीं देखना
चाहिए वयस्कता के समय। क्यूंकि वयस्कता हर समय आपको एक नयी शुरुआत का मौका देती है।
जहाँ से आप अपने आप को एक सफल इंसान बना सकते हैं।
बचपन कैसा भी रहा हो वो बस एक दिशा निर्धारण के रूप में देखा जा सकता है कि यदि ऐसे ही आप आगे रहे तो आपका भविष्य कैसा रहेगा। वहीँ
आपकी वयस्कता ये सब भूल कर एक नयी शुरुआत करने
का मौका देती है। बार बार गिर कर खड़े होने की प्रेरणा देता है जिससे की आप अपना भविष्य
सुधार सकें।
यहाँ मेरा कहना बस इतना था कि किसी का बचपन ही उसका पूरा भविष्य
निर्धारित नहीं कर सकता है। बस सब एक शुरुआत के ऊपर है कि कब आप अपने को कुछ नया करने
के लिए तैयार करने लग जाते हैं, और वहां से ही आपका पूरा जीवन बदल जाता है। लेकिन फिर भी बचपन
में कोई कैसा भी हो, काला, छोटा , मोटा या कोई भी कमी
हो उसमें, तो उसे हर जगह ऐसा
महसूस नहीं कराना चाहिए कि उसमें बहुत बड़ी कमी है और वो समाज में रहने लायक नहीं है।
क्यूंकि ऐसे में उसे किसी के साथ की जरूरत होती है। जो उसे ये अहसास दिला सके की उसमें
कोई कमी नहीं है और वो हर हिसाब से उत्तम है।
जिससे की वो अपनी कमियों पे ध्यान ना दे सके, और ख़ुशी ख़ुशी अपने आप को एक अच्छे भविष्य की ओर ले जा सके।
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